DHYAN
वेद हमारे जीवन की की आधार शिला है। ऐसी हमारी मान्यता एवं धारणा है। जो पूर्णतयः सही भी है , इसके वैदिक मंत्र आखिर आये कहा से ?
किसने की है इनकी रचना?
क्या उन्हें अपने जीवन में कोई अन्य कार्य नहीं था जो उन्होंने यही कार्य कर डाला?
यह सब बातें मेरे मन को झकझोरती रहती है।
काफी परिश्रम व् मेरे चाहत के अनुरूप मुझे परिणाम प्राप्त होने लगे और मुझे पता चला की वाकई उन ऋषिओ , महाऋषिओ ने अपने सम्पूर्ण जीवन की आहुति दे कर, खुद को तपा कर ये वैदिक मन्त्र अविष्कृत किये और हमारे जीवन की सुलभता और सरलता के लिए उन्होंने इसे लिपिबद्ध किया जो आज हम वेदो को देख, सुन व समझ पाते है। हम उन्ही ऋषि ऋषिकाओं की संताने है , पर आज जब वे हमे देखते होंगे तो उन्हें बहुत दुःख होता होगा ,
आखिर उन्हें इसकी जरुरत क्यों हुई ?
क्यों की वे जानते थे की मनुष्य बहुत ही अबोध है , और अबोध होने के साथ ही साथ इसमें और अधिक पाने की कामनाएं भी है , और उन कामनाओ के चलते मनुष्य व्यभिचारी , दुराचारी भी होता चला जायेगा , उन्हें कहीं न कहीं इन बातों का आभास पूर्व में ही हो चूका था , इस हेतु हम मनुष्यो के लिए हमारे पूर्वजो ने ध्यान की गहरी अवस्थाओं में जा कर हमारे जीवन जीने के स्वर्णिम सूत्र खोज निकाले जिन्हे आज हम वेदो के रूप में देखते है ,
जीवन जीने की अद्भुत कला का वर्णन हमारे वेदों में हमारे पूर्वजो ने किया है जिन्हे हम जानते हुए भी अनदेखा करते जाते है , जिसके परिणाम आज हमारे सामने है , सबसे बड़ा परिणाम है की आज हम वास्तविक सुख बाहर तलाश कर रहे है , वास्तव में वहा तलाश कर रहे है जहा वह है ही नहीं , और जब वह हमें प्राप्त नहीं हो पाता तो हम और अधिक दुखी हो जाते है , और इसी प्रकार हमारा दुःख दिनों दिन बढ़ता जाता है ,
इसका समाधान हमारे सामने योगिक जीवन शैली के रूप में है , अपनाओ और सुख पूर्वक जियो
किसने की है इनकी रचना?
क्या उन्हें अपने जीवन में कोई अन्य कार्य नहीं था जो उन्होंने यही कार्य कर डाला?
यह सब बातें मेरे मन को झकझोरती रहती है।
काफी परिश्रम व् मेरे चाहत के अनुरूप मुझे परिणाम प्राप्त होने लगे और मुझे पता चला की वाकई उन ऋषिओ , महाऋषिओ ने अपने सम्पूर्ण जीवन की आहुति दे कर, खुद को तपा कर ये वैदिक मन्त्र अविष्कृत किये और हमारे जीवन की सुलभता और सरलता के लिए उन्होंने इसे लिपिबद्ध किया जो आज हम वेदो को देख, सुन व समझ पाते है। हम उन्ही ऋषि ऋषिकाओं की संताने है , पर आज जब वे हमे देखते होंगे तो उन्हें बहुत दुःख होता होगा ,
आखिर उन्हें इसकी जरुरत क्यों हुई ?
क्यों की वे जानते थे की मनुष्य बहुत ही अबोध है , और अबोध होने के साथ ही साथ इसमें और अधिक पाने की कामनाएं भी है , और उन कामनाओ के चलते मनुष्य व्यभिचारी , दुराचारी भी होता चला जायेगा , उन्हें कहीं न कहीं इन बातों का आभास पूर्व में ही हो चूका था , इस हेतु हम मनुष्यो के लिए हमारे पूर्वजो ने ध्यान की गहरी अवस्थाओं में जा कर हमारे जीवन जीने के स्वर्णिम सूत्र खोज निकाले जिन्हे आज हम वेदो के रूप में देखते है ,
जीवन जीने की अद्भुत कला का वर्णन हमारे वेदों में हमारे पूर्वजो ने किया है जिन्हे हम जानते हुए भी अनदेखा करते जाते है , जिसके परिणाम आज हमारे सामने है , सबसे बड़ा परिणाम है की आज हम वास्तविक सुख बाहर तलाश कर रहे है , वास्तव में वहा तलाश कर रहे है जहा वह है ही नहीं , और जब वह हमें प्राप्त नहीं हो पाता तो हम और अधिक दुखी हो जाते है , और इसी प्रकार हमारा दुःख दिनों दिन बढ़ता जाता है ,
इसका समाधान हमारे सामने योगिक जीवन शैली के रूप में है , अपनाओ और सुख पूर्वक जियो
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