Flexibility for Advanced Asana Practice
समस्या :
महत्वपूर्ण यह है की आसनो का अभ्यास निरंतर किया जाये, निरंतरता एवं सततता है, व्यक्ति या विद्यार्थी को उसकी पूर्णता या चरम लक्ष्य तक पंहुचा सकता है, कई लोगो के साथ ऐसी समस्या देखि गई है की उनका शरीर आसनो के अभ्यास के समय उनका साथ नहीं देता, इस समस्या के साथ वे अपने असानो को अच्छी तरह लगा नहीं पते यदि लगा भी लिया तो उस आसान में लम्बे समय तक स्थिर नहीं रह पाते दर्द व् तकलीफ इतनी बढ़ जाती है की वे योगाभ्यास से चिढ़ने लगते है,
परिणामतः खुद भी आसन नहीं करते , और औरों को भी हतोत्साहित करते फिरते है,
समाधान : क्या करें:
इसके समाधान स्वरुप योगभ्यासी को कुछ नियम का पालन करना चाहिए।
१. जिनमे सबसे पहले उसे अपने योगाभ्यासों को नियमित करते रहने चाहिए, जिसमे समय समय पर वे अपने शारीरिक स्तिथि के अनुसार असानो के अभ्यास को हल्का व् गंभीर बना सकते है, वे चाहे तो उच्च स्तरीय अभ्यास को कभी कभी अपने आवश्यकता अनुसार सामान्य भी बना सकते है।
२. फिर अपने शरीर को शरीर समझे, इसे मशीन न समझे, यह शरीर आपका ही है, इसके साथ प्रेम पूर्वक व्यव्हार करे, अर्थात आसनो को करने से पहले अच्छी तरह शरीर को गर्म करना जरुरी है, सभी इस बात को जानते है पर मानते नहीं, ठन्डे शरीर मैं ही योगाभ्यासों को करना उचित नहीं होगा।
३. शरीर को गर्म करने के बाद, पहले निम्न स्तरीय अभ्यासों से शुरुवात करे, फिर धीरे धीरे उच्च स्तरीय अभ्यासों की और बढे.
४. अपने खानापन का विशेष ख्याल रखे, खानपान से अर्थ है, भोजन एवं द्रव्य, दोनों का ही समुचित ख्याल रखना चाहिए, हमेशा ध्यान रखे की हम क्या और कितना खा रहे है और जो हम खा रहे है वह योग के अनुकूल है? इस प्रकार विचार कर के मुनि स्वरूप में स्थित हो कर भोजन करने से किया गया भोजन योग मार्ग में बाधक नहीं बनता।
५. अपने दिनचर्या व ऋतुचर्या का विशेष ख्याल रखना जरुरी है, यह अतिआवश्यक है कि हर रोज प्रातः ठीक उसी समय में योगाभ्यास किया जाये, रोज रोज समय का बदलना ठीक नहीं है , योगाभ्यास को स्नान अदि से निवृत्त हो कर ही शुरू करना श्रेयस्कर होता हैं, बिना स्नान किये योगाभ्यास का कोई अर्थ नहीं होता है, वह शरीर को पुष्ट करने के बजाये हानिकर साबित होगा।
६. स्नान सदैव ताज़े पानी से करना श्रेयस्कर होता, अर्थात नहाने के लिए ठंडा या ताज़े पानी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और इसके विपरीत पीने के लिए सदैव गरम पानी का उपयोग करना चाहिए।
७. भोजन में लवण की मात्रा कम करना शरीर में फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ने के लिए बहुत कारगर साबित होता है, साथ ही साथ गाय का शुद्ध देशी घी का उपयोग भोजन में बढ़ाने से भी अधिक फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाने में मदद मिलती है.
८. सप्ताह में एक दिन का उपवास बहुत आवश्यक है, जिससे शरीर हल्का फुल्का रहता है और योगाभ्यास में मदद मिलती है.
९. योगाभ्यास में किसी भी प्रकार का नशा सर्वथा वर्जित है। यदि व्यक्ति किसी भी प्रकार का नशा करता है तो वह योगाभ्यास में कभी उच्च स्तर प्राप्त नहीं कर सकता है।
१०. सप्ताह में एक दिन का नियमित षट्कर्म करना अतिआवश्यक है, जैसे समय के अनुसार जलनेति व रबरनेटी रोजाना कर लेना श्रेयस्कर है व लघु शंख प्रक्षालन माह में एक दिन कर लेना चाहिए।
११. योगासनों के अभ्यास के बाद शरीर में बहुत अधिक थकान हो तो अगले दिन योगासनों का अभ्यास बहुत आवश्यक है वस्तुतः उस समय शरीर की पेशिया विकसित हो रही होती है उच्च स्तरीय अभ्यासों के लिए और वही सही समय होता है आगे के क्रम को जारी रखने का.
परन्तु अक्सर यह देखा जाता है की अभ्यासी अगले दिन शारीरिक कठिनाइयों की वजह से अभ्यास को जारी नहीं रख पाता और वह पुनः उसी स्थान पर पहुंच जाता है जहा से उसने शुरुवात की थी।
जबकि करना यह चाहिए की जिस समय शरीर में तकलीफ शुरू हो ठीक उसी समय अभ्यास को पुनः आरम्भ कर देना चाहिए। जैसे यदि अपने सुबह अभ्यास किया था और शाम को शरीर में तकलीफ शुरू हुयी है तो आपको शाम को ही पुनः अभ्यास शुरू करना चाहिए। इसके उलट यदि अपने एक दिन सुबह असानो को शुरू किया और तकलीफ अगले दिन सुबह शुरू हुयी तो आपको अगले दिन सुबह ही पुनः अभ्यास करना चाहिए।
१२. असानो के पूर्ण स्वरुप को प्राप्त करलेने के उपरांत उसमे झूलना नहीं चाहिए बल्कि पूर्ण स्तिथि को प्राप्त कर लेने के उपरांत उसी स्तिथि में बने रहने चाहिए, स्थिर हो जाना चाहिए। स्थिरता हमें और अधिक लचीला बनाती है जबकि झूलने की स्तिथि से हमारे भीतर लचीला पैन नहीं आ पाता।
१३. सुबह सवेरे उठा कर गर्म पानी ( उषापान )का सेवन करना चाहिए, इससे भी शरीर के पेशियों में लचीला पन आता है, ध्यान रहे यदि शरीर में कब्ज रहेगा तो उससे शरीर में विजातीय द्रव्य इकट्ठा होता जायेगा भी जिससे मांशपेशियां और भी अधिक कठोर जाएगी। अतः कब्ज को न बनने देना ही एकमात्र उपाय है।
१४ आपने कुछ जगह सुना ही होगा दूध में घी डाल के पीने से शरीर में लचीलापन आता है परन्तु मेरे मतानुसार यह बात पूर्णता सत्य नहीं है, क्योकि इसका कोई प्रमाण नहीं देखने को मिलता है, और इसका कोई प्रभाव मुझे अपने १० वर्षो के करिएर में देखने को नहीं मिला है.हलाकि इसे बहुत से योग साधको ने अपनाया और परिणाम न प्राप्त होने की दशा में इसे इसे छोड़ दिया।
१२. असानो के पूर्ण स्वरुप को प्राप्त करलेने के उपरांत उसमे झूलना नहीं चाहिए बल्कि पूर्ण स्तिथि को प्राप्त कर लेने के उपरांत उसी स्तिथि में बने रहने चाहिए, स्थिर हो जाना चाहिए। स्थिरता हमें और अधिक लचीला बनाती है जबकि झूलने की स्तिथि से हमारे भीतर लचीला पैन नहीं आ पाता।
१३. सुबह सवेरे उठा कर गर्म पानी ( उषापान )का सेवन करना चाहिए, इससे भी शरीर के पेशियों में लचीला पन आता है, ध्यान रहे यदि शरीर में कब्ज रहेगा तो उससे शरीर में विजातीय द्रव्य इकट्ठा होता जायेगा भी जिससे मांशपेशियां और भी अधिक कठोर जाएगी। अतः कब्ज को न बनने देना ही एकमात्र उपाय है।
१४ आपने कुछ जगह सुना ही होगा दूध में घी डाल के पीने से शरीर में लचीलापन आता है परन्तु मेरे मतानुसार यह बात पूर्णता सत्य नहीं है, क्योकि इसका कोई प्रमाण नहीं देखने को मिलता है, और इसका कोई प्रभाव मुझे अपने १० वर्षो के करिएर में देखने को नहीं मिला है.हलाकि इसे बहुत से योग साधको ने अपनाया और परिणाम न प्राप्त होने की दशा में इसे इसे छोड़ दिया।
Comments
Post a Comment